23 फ़रवरी 2010

काल सर्प योग (दुष्प्रभाव और शांति के उपाय)

नवग्रहों में राहु और केतु दोनो छाया ग्रह है,इस कारण ज्योतिष में इनकी द्रिष्टि का प्रभाव नहीं माना गया है,राहु का जन्म नक्षत्र भरणी और केतु का जन्म नक्षत्र आश्लेषा है,राहु के जन्म के नक्षत्र के देवता यम काल है,और केतु का जन्म नक्षत्र के देवता सर्प हैं। राहु के गुण अवगुण शनि जैसे है,और वह अपने फ़लों के अन्दर शनि के समान ही फ़लकारक है,राहु की युति जिस भी ग्रह के साथ हो और जिस भी भाव में हो और जिस भी भाव के मालिक के साथ हो उसी के साथ अपना असर देता है। राहु मिथुन राशि में उच्च का कहलाता है और धनु राशि में नीच का कहा जाता है।राहु के मित्र शनि बुध है सम शुक्र है और शत्रु ग्रहों में सूर्य चन्द्र और मंगल है। इसी प्रकार से केतु धनु राशि में उच्च का होता है और मिथुन राशि में नीच का होता है,केतु के मित्र मंगल और शुक्र है और शत्रु ग्रहों में सूर्य शनि और राहु है बुध गुरु उसके सम ग्रह है। किसी भी जातक के भाग्य कथन के लिये राहु केतु के कथन का बहुत बडा योगदान होता है,राहु की दशा अठारह साल और केतु की दशा सात साल की होती है। इन दोनो ग्रहों के सन्ताप देने के मामले जो कारण सामने आते है वे इस प्रकार से है:-
  1. राहु केतु के द्वारा संतान का अवरोध पैदा कर दिया जाना जो कि माता पिता या बडों की बात को नही मानने के कारण अपनी हठधरमी से शादी सम्बन्ध करने के कारण और समाज से अपनी ही चलाने के कारण और समाज की मर्यादा को खत्म करने के कारण,अक्सर यह बात उन लोगों के लिये भी मानी जाती है जो अपने आचार विचार को त्याग कर अन्य कुल की लडकी या लडके के साथ सम्बन्ध बनाकर अपने को संसार में उच्चतर मानने लगते है और जब उनके माता पिता का कोई स्वार्थ नही होता फ़िर भी वे अपने माता पिता के विचारों को दुत्कारते है उनके लिये यह सन्तान बाधा निश्चित रूप से देखी जाती है,राहु इसके लिये उस स्त्री या पुरुष के अन्दर कामुकता का बहुत अधिक उदय करता है और उसे लगातार पुरुष को स्त्री से और स्त्री को पुरुष से सम्पर्क रखने की जरूरत पडती है जब खुद के पति से उसकी इच्छा पूरी नही होती है तो वह अन्य के साथ सम्पर्क करने की कोशिश करते है और एक समय मे वे अपने उस शरीर के हिस्से को बरबाद कर लेते है जो उनके लिये संतान पैदा करने के लिये मुख्य माना जाता है,तरह तरह के रोग इन्फ़ेक्सन और बीमारियां उनके अन्दर भर जातीं है।
  2. राहु और केतु दोनो मिलकर पति और पत्नी के बीच में कलह का वातावरण पैदा कर देते है,और जरा जरा सी बात पर पति और पत्नी कलह करना शुरु कर देते है कोई भी मसला बिना कलह के हल नही होता है जरासी बात परिवारिक मामलों के लिये आने पर पति पत्नी को और पत्नी पति को प्रताणना से पूरा करने की फ़िराक में रहते है एक दूसरे की कमी निकाल कर समाज परिवार और घर में बदनाम करने की कोशिश करते है अधिकतर मामलों में पति या पत्नी अपने घर को त्याग कर समाज में दुत्कारने वाली जिन्दगी को जीते है अथवा वे एकान्त स्थान में अपने ही दुखों को भोगने के लिये मजबूर हो जाते है,उन्हे अपने पराये  का भेद खत्म हो जाता है और आगे की सन्तति को भी वे प्राप्त नही कर पाते है अगर किसी प्रकार से सन्तान उनके पास आ भी जाती है तो उसकी शादी विवाह के समय या शादी विवाह के पश्चात उनके लिये आने वाला दामाद या आने वाली बहू घर मे कलेश का कारण बनती है और इन्ही कारणो से राहु उनको जेल तक जाने की यातना देता है समाज में दुत्कारने वाली बातों को सामने देता है,अन्त मे अधिकतर मामलों पति या पत्नी को आत्महत्या जैसे कार्य अपने जीवन में अपनाने पडते है।
  3. अक्सर राहु और केतु के स्वभाव के अनुसार जातक जितनी भी मेहनत करता है उनका फ़ल उसे नही मिल पाता है,राहु दिमाग के अन्दर इतने भ्रम भर देता है कि जातक को कोई अच्छी भी बात बताई जाये तो जातक अपने अनुसार तर्क करने के बाद बात को पूरा नही करने देता है। इसके बाद केतु का असर अपने आप आ जाने के कारण जातक अपने दुखों को सुनाने के लिये दर दर भटकने के लिये मजबूर हो जाता है उसे अक्सर कुत्ते की तरह से भटकता हुआ देखा जा सकता है। जातक के द्वारा जो भी जीवन यापन के लिये काम किये जाते है वे अक्सर पूरे नही होते है उसका मन कुछ भी खाने और पीने का करता है और यह दोष अगर किसी प्रकार से ब्राह्मण या उच्च कुल के व्यक्ति पर भी है तो वह शराब कबाब और जैसे भी पदार्थ उसकी विषय वासना को पूरा करते है उन्ही की तरफ़ वह भागता रहता है। राहु और केतु के प्रभाव से जातक का मन व्यथित हो जाता है वह अगर दिन रात भी कमाता है तो उसके खर्चे पूरे नही होते है।
  4. राहु और केतु के अनुसार जातक के अन्दर कोई ना कोई बीमारी हमेशा घर कर जाती है जिससे वह चाह कर भी कोई अच्छा काम नही कर पाता है और केतु का प्रभाव होने पर वह शरीर के किसी ना किसी हिस्से को अपंग कर देता है जिससे जातक की परिश्रम करने की कला पर भी असर पडता है और वह जो उसे करना चाहिये नही कर पाता है और विकलांग होकर घूमता रहता तथा कभी कभी उसे भीख मांगने के लिये भी मजबूर होना पडता है। 
राहु या केतु की पूजा करना किसी भी कार्य के शुरु में जरूरी इसी लिये मानी जाती है क्योंकि अगर भूल में कोई गल्ती हो गयी हो तो उसे उनकी पूजा करने के द्वारा क्षमा मिल जाती है। अगर कुन्डली में शनि राहु और सूर्य एक साथ विराजमान हों तो उस भाव के लिये यह तीनो ग्रह सर्प दंश योग का निर्माण कर देते है।इस योग के प्रभाव से एक बात और सामने आती है कि अगर व्यक्ति चारपाई या बिस्तर भी लेटा है तो भी सर्प दंश का भय माना जाता है।
इसके अलावा और भी प्रभाव इस दोष से सामने आते हैं
  1. कालसर्प दोष से ग्रसित व्यक्ति का जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है,इस दोष में राहु के सामने जो भी ग्रह राहु की भयानकता में सामने आते जाते है उन्हे वह चटकाता जाता है। जैसे वृश्चिक का राहु है और राहु की दशा चल रही है तो जन्म के राहु से जो भी आठवें भाव में आता जायेगा वह किसी ना किसी बडी मुशीबत या मृत्यु के मुंह में चलता चला जाएगा.
  2. इस दोष के कारण जो भी जीवन जातक जीता है वह हमेशा संघर्षपूर्ण होता है,उसे किसी ना किसी कारण से अपने जीवन वाले तत्वों से जूझते रहना होता है,एक समस्या खत्म होती नही है दूसरी समस्या अपने आप शुरु हो जाती है,कभी कभी तो रात की नींद और दिन का चैन हराम हो जाता है। 
कब होता है कालसर्प प्रभावी
 कालसर्प के लिये आपको अधिक जानकारी हिन्दी-ज्योतिष में मिल जायेगी। इसका प्रभाव अक्सर राहु और केतु की खतरनाक स्थिति में होता है,जैसे राहु वृश्चिक राशि मे है और मंगल के साथ है,तो यह अस्पताली कारणों बीमारियों अचानक भुतहा बाधाओं और शमशान सम्बन्धी कारण पैदा कर देता है। इसके बाद यह जिस भी भाव में राशि के साथ होगा उसी से सम्बन्धित कष्टदायक फ़लों को प्रदान करेगा। केतु अगर इसी राशि में है तो वह जिस भाव में इस राशि के साथ होगा उसके लिये फ़टकार लगाने वाले फ़ल प्रदान करेगा। कोई भी ग्रह अपने आगे के तीस अंशों तक बलकारक माना जाता है जिसे स्थान बल के नाम से पुकारा जाता है,उसके बाद ग्रह अपने अनुसार तीसरे भाव में भी उसी अंश तक और छाया के रूप में आगे के पांच अंश और फ़ल प्रदान करता है,चौथे भाव में कोई भी ग्रह अपने अनुसार उसे नजरबंद रखने की कोशिश करता है,पंचम भाव की द्रिष्टि किसी भी ग्रह को शिक्षात्मक रूप से देखता है,लेकिन क्रूर ग्रह कभी भी उस ग्रह के नवम भाव को मर्यादा की द्रिष्टि से नही देखेगा,इसलिये यह एक तरफ़ा मामला माना जायेगा। त्रिक भाव का कालसर्प दोष बहुत ही खराब माना जाता है,साथ मुख्य त्रिकोण का कालसर्प योग धन और मानसम्मान में दिक्कत देता है,केन्द्र का कालसर्प
योग शरीर और रिस्तेदारी मामले में परेशान करता है।

    2 टिप्‍पणियां:

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    2. टीवी पे तमाम न्यूज़ चैनल्स को देख रहा हूँ लुंगी डांस भी चल रहा है आचार्य जी
      दरअसल ये सब कलियुग का प्रभाव है की भगवान को प्रिय लगने वाली लीला कथाएँ लोग नहीं दिखा रहे टीवी पे जो धरम करम वाली किताबे है उनमें लिखा है की जल शुद्ध होता लेकिन जब उसमें मीठा नमकीन खट्टा कड़वा चीज़ घोल दिया जाता है तो उस जल में स्वाद आ जाता है वरना जल अपने मूल रूप में शुद्ध है , उसी प्रकार मनुष्य की आत्मा अपने मूल रूप में शुद्ध है वो परमात्मा का ही अंश है टीवी पे तमाम सांसारिक कथाये बाधक है धर्म कर्म में इन किताबो में लिखा है जब समय मिले प्रभु का स्मरण कर ले संसार को आनंद देने वाली निंदनीय कथाये न सुने धर्मात्मा लोग ,विडम्बना देखिये हम लोग मीडिया के लोग है प्रभु का नाम सुमिरन अच्छा ही नहीं लगता कलियुग की निंदनीय सांसारिक कथाये केजरीवाल कैसे बवाल बने,बाबा yog guru धरम करम छोड़ के धरम युद्ध में आ गये, पप्पू फेंकू ट्विटर फेसबुक आदि आदि ,
      मैं किसी की निंदा नहीं करता मैं खुद ये सब बहुत चाव से देखता हूँ , जब यही सब कुसंगति कुंडली में गृह बन के आती है तब लोग प्रभु को याद करते है की क्या किया था , actually जब कथा सुनने का टाइम था तो बालक टीवी देख रहा था था तो किया तो कुछ था ही नहीं इसीलिए ये कष्ट भोग रहा,आधा जीवन बेकार हो गया बेकार के काम धंधो में बचा खुचा मीडिया की कृपा है मनुष्य योनि ऐसे ही कट जायेगी , केजरीवाल पप्पू फेंकू टीवी करते करते
      प्रभु की माया है हम सब जीव मोहित हो बार चक्कर काट रहे है , राधे राधे


      यही काल सर्प योग है आचार्य जी की टाइम (मनुष्य योनि ) बर्बाद हो गयी

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