09 दिसंबर 2010

मंगला नाडी

मंगल के नाम से जानी जाने वाली मंगला नाडी दो प्रकार की मानी जाती है,पहली सौभागिनी और दूसरी दुर्भाग्यनी,इन दोनो नाडियों की विशेषता के बारे में अलग अलग नाडी शास्त्रों का अलग अलग विचार देखा गया है। जिसे दुर्भाग्य की दाता बताया जाता है वह नाडी कलयुग जैसे काल में लोगों के लिये सौभाग्य जैसी बातें पैदा करती है जैसे कि कोई व्यक्ति अपने विचारों को तामसिक रूप में लेकर चल रहा है उसे लोगों को परेशान करने में मजा आ रहा है और लोग उससे डरकर अपने को बचाने की कोशिश कर रहे है और लोग जितने उससे डरते जा रहे है वह उतनी ही शक्ति से लोगों को और डराने के लिये आगे बढता जा रहा है इस बात को लेकर अगर माना जाये तो इस नाडी का रूप कालचक्र के अनुसार खराब समय में खराब समय के जैसा माना जा सकता है। इस नाडी में पैदा होने वाले जातक के लिये दो बातें बहुत ही उचित मानी जाती है कि जातक या तो तीन बहिनों में अकेला भाई होता है यह सौभाग्य के रूप में मंगला नाडी का रूप माना जाता है और अगर वह तीन भाई और एक बहिन के रूप में देखा जाये तो वह मंगला नाडी का दुर्भाग्य का रूप माना जा सकता है। इस नाडी में जन्म लेने वाला जातक धनु मेष और सिंह के प्रथम बीच के और आखिरी के नवांस में क्रमश: माना जाता है। इस नाडी के दोनो रूपों को जानने के लिये जो नियम नाडी शास्त्रों में बताये गये है उनके रूप भी अलग अलग मिलते है।

चन्द्रकला नाडी अगस्त नाडी और शिवा नाडी के अनुसार जातक के लिये नाम द्वि शब्दीय माने गये है उन द्वि शब्दीय नामो के अन्दर पहला नाम किसी देवता से और दूसरा नाम देवता के अधिपति से माना जाता है। और यह बात सन्तान के मामले में पिता पुत्र तथा दादा तक के नामों में देखी गयी है,नाना का नाम भी दो नामों में चलता देखा गया है। एक नाम से जातक के नाना को प्रस्तावित कामों में जो लिखा पढी के लिये पुकारने के काम आता है और दूसरा नाम को आसपास वाले बडे आदर के साथ लेते है। अक्सर इन नामों के बारे में चन्द्रकला नाना के नाम के रूप को बहुत अच्छा मानती है और अगस्त नाडी दादा के नाम को भी मानती है और शिवा नाडी जातक और जातक के जीवन साथी के रूप में सही मानती है। बाकी सभी नाडियों का मानना अगस्त नाडी जैसा ही है। जैसे जातक के नाना का नाम पारिवारिक रूप में किसी देवी के पति के साथ में नाम पुकारा जाता है और बाहर की दुनिया में उसे छोटे या बडे रूप में पुकारने की मान्यता मानी जाती है,जैसे आसपास वाले उसे लक्ष्मीपति या सीतापति उमापति रमापति सीतानाथ राधारमण जानकीनाथ के नाम से जानते है तो पत्रावलियों मे या अन्य स्थान में इस नाम वाले को छोटेलाल बडकू आदि के नाम से पुकारा जाता है। इस नाडी वाले जातक के नाना के बारे में कहा जाता है कि जातक की माँ अकेली बहिन होती है उसके एक भाई भी होता है और उस भाई की शादी के बाद नाना परिवार वाले ही आघात करते है और उस भाई की मौत के लिये जिम्मेदार माने जाते है,लेकिन उस भाई की पैशाचिक आत्मा कभी उन लोगों को सही नही रहने देती है जिन लोगों ने उसके साथ अपघात किया होता है उस भाई के जन्म के चार सौ साल तक वह उन आघातियों के परिवार वालों को समय समय पर आहत किया करती है,जैसे पागल कर देना,भूखे रखना, सन्तान को बहुतायत में पैदा कर देना और अक्समात सन्तान को किसी न किसी कारण से समाप्त कर देना। आघात करने वालों की सन्तान को विधर्मी बना देना और बिना किसी कारण के पागल कर देना,पहले बहुत सी उन्नति को दिखाना और बाद में अक्समात ही समाप्त कर देना आदि बातें मानी जाती है इसके अलावा जिन लोगों ने आघात करने वालों का साथ दिया होता है उनकी सन्तान को अपंग बना देना,उनके घर में स्त्रियों को कष्टदायक बीमारियां देना,सन्तान नही चलने देना और सन्तान चला भी ली जाये तो किसी न किसी प्रकार का बडा रोग देकर जिन्दगी भर परेशान करते रहना बताया गया है।

इस नाडी के दुर्भाग्य वाली नाडी के लिये कहा गया है कि जातक तीन भाई और एक बहिन के रूप में अपनी औकात मानकर चलते है,इन औकातों में धन धान्य की परिपूर्णता होती है और बहिन के भाग्य से सभी भाइयों की उन्नति होती जाती है लेकिन बहिन के जाने के बाद अचानक भाइयों पर वज्रपात जैसी नौबत आजाती है सभी धर्म से च्युत हो जाते है,सन्तान आपे से बाहर हो जाती है और आगे की सभी सन्ताने वर्ण शंकर जैसी पैदा होने लगती है। अक्सर बडे भाई के दो पुत्र एक पुत्री या एक पुत्र बडी पुत्री पैदा होती है,लेकिन एक ही भाई बहिन की पैदाइस होती है,जातक के बडे भाई या उसकी पत्नी के अहम की मात्रा अधिक होती है और उस अहम के कारण वह अपना जीवन बरबाद कर लेते है। छोटे भाई की भी यही हालत होती है और एक ही प्रकार की सन्तान के मामले में जाना जाता है एक भाई की औकात न तो शादी वाली कही जाती है और न ही बिना शादी वाली कही जाती है उसकी प्रीति अक्सर वैश्या जैसी स्त्रियों से होती है कभी कोई कभी कोई स्त्री उसके नाम का सिन्दूर लगाने भी लगती है और कभी वैश्यावृत्ति भी करने लगती है। अक्सर इस नाडी का सबसे खतरनाक रूप जब सामने आता है जब पिता पुत्र को या पुत्र पिता को अपने हाथ से कोई न कोई कारण बनाकर अन्तगित की तरफ़ ले जाता है। यह अक्सर घर की वैश्या धर्मी स्त्रियों के कारण होता है,वैसे तो सभी स्त्रियां मर्यादा के अनुरूप मिलती है लेकिन समय की पालना में और अपने अपने समय के अनुसार दुराचार की तरफ़ चली जाती है,किसी के अन्दर नाम काऔर किसी के अन्दर धन का अहम हो जाता है और इसी अहम का फ़ायदा उठाकर लोग इस प्रकार की स्त्रियों को अपने जाल में ले लेते है।

सौभाग्य की दाता नाडी के बारे में कहा जाता है कि तीन पुत्रिया और एक पुत्र की पैदाइस होती है और तीनो पुत्रिया अपने भाई की रक्षा के लिये हमेशा तैयार रहती है। मंगला के रूप में बीच वाली बहिन हमेशा अपने भाई की रक्षा के उपाय सोचा करती है जबकि बडी बहिन भाई के बच्चों की शुरुआत की जिन्दगी को पार करती है,सबसे छोटी बहिन अपने भाई के लिये मरने मारने को तैयार रहती है। इस मंगला नाडी के रूप में जातक की तीनो बहिनो के रूप में कहा जाता है कि पहली सरस्वती के रूप में दूसरी लक्ष्मी के रूप में और तीसरी काली के रूप में पैदा होती है। पहली का घर बार सभी शिक्षा आदि के क्षेत्र में होता है और भृगु की तरह से एक ही पुत्र की पैदाइस होती है एक पुत्री होती वह भी शिक्षा के क्षेत्र में ही जाती है। दूसरी के भी लक्ष्मीपुत्र की तरह से एक ही पुत्र होता है लेकिन अपने को मस्त मलंग मानता है और अपनी उम्र की नवी साल से अपने माता पिता को निहाल करता चला जाता है उसके हर नवें साल में माता पिता की जमीन जायदाद की बरक्कत होती है उसका पिता हजारों लोगों को भोजन करवाने के बाद भोजन करता है। उस बहिन के मामले में कहा जाता है कि वह अगर माता दुर्गा और शिवजी मे अनन्य विश्वास करती रहती है तो उसकी एक पुत्री जो किसी पवित्र शिवधाम में ही जाकर विवाही जाती है सुखी रहती है,अन्यथा वह अपनी पुत्री से ही दुखी रहती है। तीसरी बहिन के मामले में कहा जाता है कि उसका पति एक तरह से लोगों के जीवन की रक्षा करने के लिये अपने को समाज देश या परिवार में अपना रूप प्रदर्शित करता है। छोटी बहिने के साथ भी एक राहु (विधवा स्त्री) का रहना पाया जाता है जो उसे समय समय पर शासित करने के लिये जाना जाता है। जातक के प्रति कहा जाता है कि वह कितनी ही विद्या को ग्रहण करले लेकिन उसकी आजीवन सहायता बहिने ही करती है और उसी कारण से वह अपने अनुसार कुछ भी नही कर पाता है। जातक के भी दो पुत्र और एक पुत्री की पैदाइस मानी जाती है,जातक की पत्नी अपनी हठधर्मी से अपने को आगे बढाने की कोशिश करती है और जातक की सादगी का फ़ायदा उठाने से भी नही चूकती है। जातक की पत्नी अपने परिवार की गुप्त रूप से सहायता भी करती है लेकिन समझ में किसी को भी नही आने देती है। अक्सर उसे केवल धन से ही मोह होता है और वह अपने परिवार को दिखावे के लिये अपने माता पिता की सेवा करने के लिये पहिचानी जाती है लेकिन जैसे ही मौका मिलता है अपने कर्तव्यों से दूर भागने की कोशिश करती है। जातक की पुत्री के अन्दर अधिक वासनायें और राजनीति आने से वह भी स्वेच्छाचारी हो जाती है और अपने को दूसरी जातियों के साथ जाने में उसे कोई हिचक नही होती है। अक्सर उसका झुकाव जातक की जाति से बहुत ही नीची जाति के लोगों के रूप में देखा जाता है,जातक की पुत्री के केतु के रूप में यह मंगला नाडी चेहरे पर एक निशान भी देती है जो जन्म से ही सूचित करने वाला होता है कि यह समाज और परिवार को दांतों में उंगली दबाने के लिये विवस करेगी।

इस नाडी के दोषों की शांति के लिये जो उपाय किये जाते है वे केवल शिवधाम में ही किये जाते है,जातक को भगवान शिव की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर समुद्र में स्नान करने के बाद शिवजी को अर्पित करने से इस नाडी के दोष दूर होते माने जाते है।

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