18 फ़रवरी 2010

हिन्दी में नाडियों के नाम

वसुधा,वैश्रणवी,ब्राहमी,कालकूटाहि,शांकरी,सुधाकर-समा,सौम्या,सुरा,मनोहरा,माध्वी,मन्जुस्वना,घोरा,कुंभिनी,कुटिला,प्रभा,परा,
पयस्विनी,माला,जगती,जर्झरा,ध्रुवा,मूसला,मृदगरा,पाशा,चम्पका,दामिनी,मही,कलुषा,कमला,कान्ता,कराला,करिकरा,क्षमा,दुर्धरा,
दुर्भगा,विश्वा,विशीर्णा,विह्वला,अनिला,भीमा,विकटा,अविला,विभ्रमा,सुखप्रदा,स्निग्धा,सोदरा,सुरसुन्दरी,अमृतप्राशिनी,काला,कामधुक
करवीरिणी,गह्वरा,कुण्डिनी,विशाख्या,विषनाशिनी,नर्मदा,शीतला,निम्ना,प्रीता,प्रियविवर्धनी,मानधना,चित्रा,विचित्रा,चीरजीवनी,भूपा
गदाहरा,नाला,नलिनी,निर्मला,नदी,सुधामृतांशु,कलुशाडुकरा,त्रैलोक्यमोहकरी,महामाया,सुशीतला,सुखदा,सुप्रभा,गाकलिका,शोभा,
शोभना,शिवदा,शिवा,बला,ज्वाला,गदा,गाढा,नूतना,सुमनोहरा,सुमत्यंशा,सोमवल्ली,सोमलता,मंगला,मुद्रिका,सुधा,मलापवर्गा,
पश्यता,नवनीता,निशाचरी,निवृति,निर्गता,सारा,समगा,समदा,समा,विश्वंभरा,कुमारी,कोकिला,कुंजराकृति,ऐनद्रा,स्वाहा,स्वधा,वर्हि,
पीता,यक्षा,अचलप्रभा,सारिणी,मधुरा,मैत्री,हारिणी,मरुत,धनंजया,धनकरी,धनदा,कच्छपाम्बुजा,ईशानी,शूलिनी,रौद्री,शिवकरी,कला
कुन्दा,मुकुन्दा,परता,बसिता,कदली,स्मरा,कदला,कामिनी,कलशोद्भवा,वीरप्रभू,संगरा,शतयज्ञा,शतावरी,विरहपा,स्त्रग्वी,पाटलिनी,
पंकजा,परमेश्वरी.
वसुधा नाडी
 वसुधा नाडी को जानने के लिए जो श्लोक प्रयुक्त किया गया है वह इस प्रकार से है:-
"मालिनी अंशे पूर्व भागे कालकूटा अंश गे गुरु,
मातंग योग जातस्य रक्त वर्ण शुभ आकृति,
मालिनी के अंश में पूर्व भाग में कालकूट के बीते हुए अंश में गुरु की यह स्थिति मातंग योग का निर्माण करती है,इस योग में पैदा होने वाला जातक लाल रंग की आभा वाला और डील डौल से वह सुन्दर शरीर वाला होता है.
"गुरु स्व उच्चे  झष अंश्स्थे भार्गावेना समन्वितः,
मातंग योगो विख्यातौ निजे ऋक्षांशके शशी."
गुरु का स्थान कर्क राशि के आखिरी नवमांश में हो और शुक्र के साथ हो तो "मातंग" योग का निर्माण हो जाता है। चन्द्रमा भी अपनी ही राशि अगर साथ देता हो तो भी इस योग का बलकारक होना मिलता है। गुरु का कर्क राशि में २६’४० से ३०’ के बीच मे होना भी मातंग योग का निर्माण करता है। इस योग के प्रभाव से केवल जातक के शरीर और उसके निर्माण के साथ रंग और सुन्दरता का भान सही तरीके से हो जाता है।
"चन्द्र त्रिकोणगे पापे मन्दे राहु समन्विते,
मालिन्य अंशे प्रजातस्य मालिन्य कुल जन्मवान".
चन्द्रमा के त्रिकोण में शनि और राहु का योगात्मक रूप हो,यानी शनि बक्री नही हो और राहु का पूरा प्रभाव चन्द्रमा पर हो तो जातक का जन्म मलिन कुल में होता है.मलिन कुल का अभिप्राय किसी तरह से भी जाति से नही है,मलिन कुल का प्रभाव किसी ऐसे परिवार से होता है जो चालाकी झूठ फ़रेब चोरी डकैती हिंसा आदि में विश्वास करता हो,इस कारण को जातक के प्रति जो धारणा बनाई जाती है उसके प्रति माता का चरित्र और माता के कार्य करने की शैली को भी माना जा सकता है,अगर माता का जन्म ही ऐसे परिवार में हुआ है तो राहु अपना ग्रहण देकर माता को उसी स्वभाव का बनाने में कोई कोताही नही बरतेगा.
"मातंग योग मालिन्यं सोदरभ्रातृहीनवान,
भेद भ्रातृ युतश्चैव कलत्रयवान पिता".
मातंग योग में अगर मलिन योग का निर्माण हो जाता है तो जातक के अपने खास पिता से प्राप्त भाई बहिनों का योगात्मक रूप नही देखना चाहिये,जातक के पिता का पता अधिकतर नही चलता है और इस योग के निर्माण में जातक का पिता भी कम से कम तीन स्त्रियों के साथ अपना सम्बन्ध बनाये रखने का कारण भी होता है.और इस कारण से सगे भाई बहिने नही मिलती है,वे सौतेली सन्तान तो हो सकती है.
"जननी दी्र्घमायुष्यं दुश्चरित्र सहोदरी,
माता पतिव्रता पुण्या गृहच्छिद्रेण कर्शिता"
जातक की माता अधिक जीवन को जीने वाली होती है लेकिन जातक की बहिन के कुछ भी नही कहा जा सकता है,जातक की माता तो जाति से सम्बन्ध रख सकती है लेकिन जातक की पत्नी की जाति प्रश्नात्मक रूप में आजाती है,अगर वह किसी प्रकार से सचरित्र भी हो तो वह अपने घर का भेद किसी न किसी प्रकार से बाहर वालों को देती रहती है.गुरु अगर नवे भाव का मालिक चन्द्रमा की राशि से है,और अगर वह शुक्र और चन्द्रमा से अपनी युति बनाकर रखता है,तो चन्द्र और शुक्र दोनो मिलकर जातक को सौतेली माता का होना प्रदर्शित करते है। चन्द्रमा से चौथे भाव में शुक्र हो,और वह गुरु से सम्बन्ध बनाकर रखे हो तो जातक की माता लम्बी उम्र की मालिक होती है।
"बहुकालम मांगल्या भ्रातृ नाशेन दुख:ता,
मतंग योग एकांकी मतंगांशगे गुरौ."
अगर मातंग योग में गुरु अपना बल देता है तो पिता की भी लम्बी आयु होती है और माता को अपने भाई से हमेशा क्लेश रहता है,कारण इस योग में धनुं,सिंह और मेष का योग होने के कारण तथा चन्द्रमा का विपरीत प्रभाव देने के कारण माता की शादी के बाद पिता का परिवार इस काबिल नही रहता है कि वह अपने अनुसार काम कर सके,और इस प्रकार से जातक का ननिहाल खानदान दुखी ही रहता है।
" भगिन्य एका चिरायुष्या शेषं नाशयमि तीरयेत,
पितृव्ये वा मातुले वा स्वगोत्रज्ञाति वर्गगे".
एक बहिन का योग यह योग देता है,जो जातक की मौसी की कारक होती है और वह भी लम्बी उम्र की होती है,इसके अलावा जो भी मामा आदि पैदा होते है वे पैदा होने के पहले ही गर्भ में मर जाते है। यह योग माता के कुल में ही माना जाता है। वसुधा नाडी का महत्व पृथ्वी तत्व के कारण माना जाता है और इस का सीधा सम्बन्ध माता से माना जाता है इसलिये इस नाडी को मातंग योगा की उपाधि देकर बखानने की जरूरत पडती है।
"मतंग योग जातस्य स्वभार्यासंगमेष्यति,
वियोगवश तश्चैव वैधव्येन मरिष्यति."
जातक मातंग योग में जो पैदा होता है वह अपनी ही भार्या या पति से रमण करता है,जातक की मृत्यु जल्दी होने के कारण भार्या या पति को वैधव्य जीवन जीने के लिये मजबूर होना पडता है,और अन्त मे मृत्यु हो जाती है।
"पितुरूद्वाहपूर्वं तु त्राल्ये वा मृतिमादिशेत,
सुखाधिपं निशानाथे नीच नक्र नवांशगे."
जातक का पिता जातक के बचपन में ही मर जाता है,अथवा जातक का पिता जातक की शादी के पहले ही मर जाता है.अगर चन्द्रमा वृश्चिक राशि या मकर राशि का होता है। अथव इनके नवांश में विराजमान होता है।
"भाग्याधिपेन संद्र्ष्टे श्रीकारांश नाडिगे,
दुर्भगावसरे जात: सोदर्भ्रातृहीनवान".
भाग्य का अधिकारी पिता जल्दी मर जाता है अगर चन्द्रमा का स्थान इस योग में श्रीकारांश नाडी में होता है,और वह चौथे भाव का मालिक होता है,अथवा चन्द्रमा का स्थान वृश्चिक राशि या मकर राशि अथवा चन्द्रमा को गुरु के द्वारा नवें स्थान से देखा जा रहा हो।

 

2 टिप्‍पणियां: