16 अगस्त 2010

नाडी ज्योतिष से कुम्भ राशि

जब जन्म अगडा नाडी में होता है,तथा चन्द्रमा कुटिला नाडी में हो तो माता के परिवार में सोचने लायक स्थिति होती है,माता और जातक के बीच में हमेशा लडाई होती रहती है,माता की बहिन को भी बहुत परेशानी होती है,और जातक की मामी के लिये सोचने वाली स्थति होती है,चाहे वह चरित्र से सम्बन्धित हो या फ़िर तंत्र मंत्र से सम्बन्धित हो.जैसे ही जातक जीवन की दूसरी दशा के पांचवे साल को पार करता है,जातक की सौतेली बहिन का घर में प्रवेश का एक साल होता है,जातक के घर मे शादी समारोह और भाग्य की बढोत्तरी के लिये समय शुरु हो जाता है,जातक के सौतेले भाई की दिमागी हालत खराब होने लगती है उसका भी कारण जातक की सौतेली माता को ही माना जाता है। जातक के सौतेली माता और एक बडा भाई होता है,इसके साथ ही अगर ग्यारहवे भाव का मालिक विश्वंभरा नाडी में होता है तो दो लम्बी उम्र की बहिने होती है,राहु अगर लगन में होता है तो जातक खुश रहने वाला होता है,अगर ग्यारहवें भाव का मालिक दसवें भाव में होता है तो वह राहु का बडे भाई को देता है,वह जादू टोने से ग्रस्त होता है,और शराबी कबाबी हो जाता है,पैत्रिक जायदाद पर मौज उडाने वाला होता है,नीच बुद्धि होती है,हमेशा सच्चाई से दूर होता है,अपने धन को बेकार की औरतों के चक्कर में केवल सेक्स के लिये खर्च करता है,हमेशा अपने पिता की बातों को छोड कर दूसरों की बातों को मानने के लिये तैयार रहता है। वह दूसरी स्त्रियों के चक्कर में अपनी पत्नी से नफ़रत रखता है। पांचवे भाव के मालिक को ग्यारहवें भाव से गिनने पर सौतेले भाई की प्रगति के बारे में पता लगता है,अगर सौतेला भाई इस नाडी के आधे भाग में पैदा होता है तो वह संतानहीन होता है,अगर बच्चे जन्म भी लेते है तो जल्दी ही समाप्त हो जाते है,इसका कारण उस सौतेले भाई के पिछले जन्म में उसके द्वारा किये कुकृत्यों का फ़ल होता है। इन बातों को समाप्त करने के लिये जातक के सौतेले भाई को समुद्र में स्नान करने के बाद भगवान शिव के दर्शन करने से यह पाप दूर होते है। अपने को धर्म में स्थापित करना और छठ तिथि का उपवास करने से बच्चों की प्राप्तियां होने लगती है। इस नाडी के प्रभाव के बारे में एक लेखन और मिलता है कि जो वेदव्यास के आश्रम से सम्बन्धित है उसमें कहा गया है कि इस उपाय के अलावा जातक का सौतेला भाई अगर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की पूजा करे और ज्योतिष शास्त्र से सम्बन्धित व्यक्तियों को दान करता रहे भी उसे जीवन की खुशियां मिलने लगती है। सौतेले भाई के बच्चों के बारे में ग्यारहवे से पांचवे यानी तीसरे भाव से जाना जाता है। जातक का पिता बचपन में ही स्वर्गवासी या घर से निकल जाता है अगर सूर्य केतु के साथ सिंह राशि में मंजुस्वना नाडी में होता है,जातक को शारीरिक कष्ट अधिक होते है,और अल्सर आदि से पीडित होता है। उसकी की मृत्यु लगनाधीश की दशा की समाप्ति में या जन्म से दूसरी दशा में होती है। सूर्य और गुरु अगर मंजुस्वना या विश्वंभरा नाडी में होते है तो जातक का पिता भूत प्रेत से ग्रसित होता है। उसके शरीर में केंसर जैसी बीमारियां होती है यह सब उसकी पहली पत्नी के परिवार वालों से या पत्नी के द्वारा करवाये गये तंत्रों के कारण मानी जाती है। जातक के पिता की सम्पत्ति भी पहली पत्नी के कारणों से समाप्त होती है। अगर जातक की लगन से मंगल पंचम भाव में हो और शुक्र किसी शत्रु ग्रह के साथ हो तो पिता की मृत्यु दूर देश में होती है। सूर्य जब सिंह राशि में मंजुश्वना नाडी में होता है तो जातक के पिता की मौत दूर गांव में जहां चिकित्सा की सुविधा नही होती है पेट की खराबी और उल्टी आदि से होती है। इस बारे में यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि जातक की पहली और दूसरी दशा के मिलने पर पिता का नाश हो सकता है। जातक की माता की बहिन विपरीत परिस्थितियों से गुजरती है और नाना भी कई प्रकार के दुर्भाग्य से जुडा होता है। जातक के पिता के विषय में यह भी कहा जाता है कि नवें भाव का मालिक शुक्र अगर किसी सौम्य ग्रह के साथ होता है तो जातक के पिता की मृत्यु अक्समात होती है और माता दूर होती है। अगर गुरु विश्वंभरा नाडी में होता है तो जातक के पिता के लिये कहा जाता है कि वह तीर्थ यात्रा में जाते समय या आते समय रास्ते में उसकी मृत्यु होती है। अगर चन्द्रमा कुटिला नाडी में होता है तो जातक की माता क्लेश करने वाली होती है। बुध जो छठे भाव का मालिक है बुध से युति करने से दो मामाओं की बात को कहता है,जो अलग अलग दूर रहते है,माता के इतिहास में भी कई प्रश्न पैदा होते है,वह अपने भाई की मृत्यु से परेशान होती है और काफ़ी समय तक विधवा जीवन को व्यतीत करने के बाद लम्बी उम्र के बाद मरती है। वह अपने बीच वाले पुत्र के साथ खुश रहती है,ग्यारहवे भाव का मालिक गुरु अगर कुम्भ नवांस में होता है और शनि साथ होता है तो जातक की सौतेली बहिन के लम्बी आयु वाला पति होता है,चन्द्र अगर कुटिला नाडी में और सूर्य अगर मंजुस्वना नाडी में होता है तो उसकी बहिन को छोटी उम्र में ही वैधव्य झेलना पडता है। अगडा नाडी और कुम्भ राशि में जन्म के बाद गुरु विश्वंभरा नाडी में है तो बहिन के कम मात्रा में संतान होती है और वह भाग्यशाली व्यक्ति के लिये दुर्भाग्यशाली होती है। चन्द्रमा के कुटिला नाडी में होने का मतलब है कि बीमार बहिन,वह अपने दो पुत्रों या जुडवां पुत्रों के वियोग से भी दुखी होती है,उसका पति बीमारियों से जूझता है और अपने भाइयों से सताया जाता है,वह अपने भाग्य को अपनी जवानी में ही बरबाद कर लेता है,जातक का सौतेला साला किसी बडी राजनीति से जुडा होता है और अपने को शाही रखता है,उसके पास धन दौलत और उपभोग की सभी वस्तुयें होती है। सूर्य विशम्भरा नाडी में होने पर जातक को खुशियां अपनी सौतेली माता से दसवीं साल में मिलती है। जन्म के तीसरी साल में वह काफ़ी परेशानी झेलता है उसका कारण परिवार में शोक और दुख फ़ैले होते हैं। जातक का भाई कुछ दुर्भाग्य को झेलने के बाद शुद्ध ह्रदय का हो जाता है,उसकी पत्नी रविवार का व्रत करने के बाद धनी और सुखी हो जाती है,अपने पति की उम्र को भी बढा लेती है। चन्द्रमा के मंजुस्वना नाडी में होने से जातक को सहायतायें मिलती रहती है,जातक का भाई अगर समुद्र में स्नान करने के बाद शिवजी के दर्शन करे और रविवार का व्रत आदि करे तो वह हमेशा के लिये सुखी हो जाता है। शुक्र जो नवें भाव का मालिक है और शनि के साथ छठे भाव में बैठ जाता है तो जातक अच्छी शिक्षा को प्राप्त करता है,अधिक से अधिक गांवों में राजकरता है,वह पढाई और लिखाई में चतुर होता है,वह तीन भाषाओं का जानकार होता है,भगवान शंकर और विष्णु का भक्त होता है,राजयोग उसकी जिन्दगी में होता है। उसे सभी सुख अपनी उम्र की सातवीं साल से मिलने शुरु हो जाते है। उसके लिये जनेऊ आदि का प्रबन्ध करवाने वाले उसके सौतेले भाई होते है,उसकी शादी जन्म की तीसरी दशा में होती है,वह भी दशा के आरम्भ में माना जाता है,चन्द्रमा का स्थान कुटिला नाडी में होने से और मीन राशि में होने से जातक राजा को कर देता है,और कई प्रकार के शाही सुखों को भोगता है। जातक के जन्म के समय इस नाडी में चन्द्रमा के होने से बचपन में छोटी माता भी निकलती है। चन्द्रमा अगर मीन राशि के नवमांश में होता है और गुरु लगन के त्रिकोण में होता है तो जातक के पास उम्र की बीसवीं और पच्चीसवीं साल में वाहन धन आदि से सुख प्राप्त होता है। अगर कोई दशा बत्तिसवीं साल में बदल रही होती है तो उसे अक्समात मृत्यु का भय भी होता है,उसके लिये भी समुद्र में स्नान और शिवार्चन से यह फ़ायदा होता है। गुरु के विश्वम्भरा नाडी में होने से जातक की माता की मृत्यु चौथी और पांचवी दशा के मिलने पर होती है। यह समय उम्र का अडतालीसवा साल भी हो सकता है। यह माता की सामयिक मृत्यु होती है,जातक की माता को मृत्यु का भय उसकी चौबीसवीं साल में हुया होता है। शनि जब चौथे भाव में या चौथे भाव के मालिक शुक्र के साथ गोचर करता है तो जातक को राज्य की तरफ़ से परेशानी आती है,या तो राज्य उसकी सम्पत्ति को किसी सार्वजनिक कार्य के लिये हडप लेता है,या फ़िर किसी अन्य कारण उसकी जायदाद राज्य के पास चली जाती है,इससे भी बचने के लिये जातक को समुद्र में स्नान करने के बाद शिवजी की अर्चना करने से फ़ायदा होता है। जब शनि आठवें भाव के मालिक के साथ त्रिकोणात्मक युति बनाता है,तो धन की हानि बनती है,यह युति बाइसवीं साल में भी बन सकती है,या बुध की दशा में माना जा सकता है या फ़िर केतु की दशा में भी माना जा सकता है।पहिचान के लिये जातक का जीवन साथी किन्ही पिशाचीय कारणों से ग्रस्त भी हो जाता है। गुरु जब विश्वंभरा नाडी में होता है तो वह तीन पत्नियां देता है। उसका पहला पुत्र किन्ही दैवीय कारणों से खत्म हो जाता है,बाइसवीं के बाद पुत्र की प्राप्ति होती है,जो मरे हुये पुत्र के रूप में होती है,आखिर में एक पुत्र और दो पुत्रियां जातक के पास होती है।मंगल पंचम में होने पर बुध के अष्टम में होने पर बच्चे की पैदाइस मे देरी होती है,होती भी है तो मरे हुये बच्चों की पैदाइस होती है। समुद्र में स्नान करने के बाद और कार्तिकेयजी के दर्शन करने के बाद लम्बी उम्र के बच्चे मिल जाते हैं। उम्र की चौबीसवीं साल में सौतेले भाई की बरबादी शुरु हो जाती है। जातक जब चन्द्रमा या गुरु की दशा को भुगत रहा होता है तो रिस्तेदारी की मौते उसे डराती रहतीं है। चन्द्रमा से आठवें भाव के मालिक के प्रति किये जाने वाले उपाय लाभदायक हो जाते है। शुक्र की दशा में बुध के पंचम में गोचर के समय जातक का भाग्य स्वर्णिम होता है,उसे जो चाहिये मिल जाता है। अगडा नाडी के जन्म में चौथी दशा जातक की प्रसिद्धि दे जाती है। गुरु और सूर्य का मंजुस्वना नाडी में होने से जातक की मौत छप्पनवीं साल में मानी जाती है,मौत का दिन मंगलवार होता है। जातक की उम्र की तीसरी साल में या पहली और दूसरी दशा के मिलने के समय जातक के परिवार की लडाइयां समाप्त हो जाती है। अगडा नाडी में जन्म लेने वाले जातक की बहिन के कोई संतान नही होती है लेकिन वह खुशी रहती है। अगडा नाडी में जन्म लेने वाले जातक अधिकतर जुडवां होते है और बहिन भाई होते है। अगर चन्द्रमा कुटिला नाडी में होता है तो अक्सर दो जुडवां बहिने होती है,उसमे से एक बहिन बहुत दुखी रहती है। पहली बहिन के पति का शाही काम होता है और उसका नाम भी प्रसिद्ध होता है। जातक का साला एक सोचने वाली स्थिति में होता है और मनुष्यों से खींचे जाने वाले वाहन को भी चला सकता है। अगर गुरु फ़लकारक नवांस मे है तो जातक की बहिन पुत्र और पुत्री से संयुक्त होती है।

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